Friday, September 12, 2014

चेन रिएक्शन


तुम्हे इल्म नहीं शायद
पर
तुम्हारी मुस्कुराहट में है
गजब का असर
यकीं नहीं करोगे तुम
कि तुम्हारे होंठों पर सजी
प्यारी सी मुस्कान
उत्प्रेरक का काम करती है
मेरी जिंदगी में
... और शुरू हो जाता है
चेन रिएक्शन

तुम मुस्कुराते हो..
तो मुस्कुरा उठती हूँ
मैं भी
और फिर
मुस्कुराने लगती है
मेरे आस-पास की हर शै
रौशन हो उठता है
मेरा कमरा
और ख़ुशी से गाने लगती हैं
दीवारें भी

ड्राइंग रूम के उस कोने में..
वो जो सितार रखा है ना
उसके भी तारों में बज उठती है
झंकार सी
और वो जो एक्वेरियम में गोल्ड फिश है..
उसे भी सुनती हूँ मैं
खिलखिलाते हुए
बालकनी में गुलाब के फूल
कुछ इस अंदाज़ में खिलते हैं
मानो
होड़ लगा रहे हों
एक दुसरे से
ज्यादा बड़ी स्माइल की..

तुम्हारे मुस्कुराने से शुरू हुआ ये सिलसिला
चलता रहता है .. मुसलसल
क्या-क्या बताऊँ तुम्हें
किस-किस की मुस्कुराहटें गिनाऊँ
बस जान लो इतना
कि सब
मुस्कुराते हैं
खिलखिलाते हैं
चहकते हैं
गुनगुनाते हैं

और ...
भर उठती है
खुशियों से
उम्मीदों से
सपनों से
ऊर्जा से
ऊष्मा से
नई उमंगों से.. ज़िन्दगी
जब तुम मुस्कुराते हो..

Thursday, September 4, 2014

जाने कितनी पीड़ाएं हैं...

अनदेखी सी, अनजानी सी
अपनों की बेईमानी सी
दो आखर में सिमटी जैसे
लंबी एक कहानी सी

जाने कितनी पीड़ाएं हैं...

मन के भीतर झांक सकें ना

देखें सब, पर भांप सकें ना
फीकी मुस्कानों में झलके
ज़ख्मों की निशानी सी

जाने कितनी पीड़ाएं हैं...

कंधों पर उम्मीदें भारी
चिंतायें... कितनी सारी

अनसुलझे प्रश्नों की जैसे
गठरी एक पुरानी सी
जाने कितनी पीड़ाएं हैं...

प्रेम अधीर करे हर रंग में
विरह मिले, चाहे श्याम हों संग में
राधा भी व्याकुल सी फिरती
मीरा भी दीवानी सी 
जाने कितनी पीड़ाएं हैं...