एक कविता
कहीं खो गई है...
संभालकर रखी थी
बहुत, क्योंकि थी बेहद खास
और
बहुत, क्योंकि थी बेहद खास
और
उसके खास होने की वजह थे
तुम तुम से रूठकर
तुमपर ही लिखी थी
ना जाने कितने उलाहनें दिये थे
..की थीं सौ-सौ शिकायतें भी
शब्दों में थी नाराजगी
पर 'बिटवीन द लाइन्स'...
एक जिद थी
तुम से
फिर कोई अपेक्षा ना रखने की
याद है मुझे..
फिर कोई अपेक्षा ना रखने की
याद है मुझे..
लिखा था मैंने बहुत छटपटाकर
**.... मैं करूं मन्नतें/मिन्नतें
तुम मौज लो.... लेते रहो
अब नहीं स्वीकार मुझको... **
हंसी आती है अब खुदपर
और अपनी बेचारगी पर भी
देखो तो ... तुम फिर ले रहे हो मौज
और मैं... बेबस सी
फिर से नतमस्तक हूं
तमाम मिन्नतों/मन्नतों के साथ
वो कविता कहीं खो गई है
और खो गया है ... मेरा 'हठ' भी... !!!!
**.... मैं करूं मन्नतें/मिन्नतें
तुम मौज लो.... लेते रहो
अब नहीं स्वीकार मुझको... **
हंसी आती है अब खुदपर
और अपनी बेचारगी पर भी
देखो तो ... तुम फिर ले रहे हो मौज
और मैं... बेबस सी
फिर से नतमस्तक हूं
तमाम मिन्नतों/मन्नतों के साथ
वो कविता कहीं खो गई है
और खो गया है ... मेरा 'हठ' भी... !!!!