Friday, August 31, 2007

बहुत दिन बीत गए

तुम्हे निहारे हुए बहुत दिन बीत गए
मन को मारे हुए बहुत दिन बीत गए


मेरे प्रियतम तुम आओ तो
फिर से मैं सिंगार करूं
ज़ुल्फ़ सँवारे हुए बहुत दिन बीत गए


अंक मे अपने भर लो मुझको
इतना तो उपकार करो
बांह पसारे हुए बहुत दिन बीत गए

तुम संग वो खुशियाँ लौटेंगी
सुख कल वो पल आएंगे
जिन्हे गुज़ारे हुए बहुत दिन बीत गए

Tuesday, August 14, 2007

देखिए ....

देखिए क्या था, क्या होता जा रहा है आदमी
इंसानियत का अर्थ खोता जा रहा है आदमी

शब् गुलामी की ढले गुज़रे हैं कितने ही दशक
बेडियाँ फिर भी तो ढोता जा रहा है आदमी

सांस भी ना ले सकेंगी आने वाली पीढियां
विष हवाओं में पिरोता जा रहा है आदमी

कॉम ओ मज़हब की खातिर माँ के भी टुकड़े किये
शूल इस धरती पे बोता जा रहा है आदमी

आज़ाद हैं ग़र आज हम कोई बताये 'अर्चना'
ख़ून के आंसू क्यों रोता जा रहा है आदमी