मत कहो तुम छंद प्रेम के
मत रचो कोई काव्य मुझपर
मत करो अभिव्यक्त स्वयं को
दो न संवेदनाओं को स्वर
बस तुम्हारे तीन शब्द
पर्याप्त हैं मेरे लिए
मैं कहूँ जो भी तुम्हें
बस कहना तुम
'मैं भी प्रिये'
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मैं कहूँ कोई क्षण नहीं जाता
तुम्हारी स्मृति बिना
या कहूँ आहट तेरी
झनकारती है मन-वीणा
झनकारती है मन-वीणा
भीगती हूँ चांदनी में
तुमको मैं थामे हुए
अब तुम कहो
'मैं भी प्रिये'
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मैं कहूँ हर स्वप्न में
हर कल्पना में तुम ही हो
या कहूँ हर याचना में
प्रार्थना में तूम ही हो
प्रार्थना में तूम ही हो
करती हूँ खुद को समर्पित
तेरे 'अर्चन' के लिए
अब तुम कहो
'मैं भी प्रिये'
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मैं कहूँ तेरे सिवा
न मन को आये कुछ भी रास
इक तुम्हारी देहगंध से
है सुवासित सांस सांस
भींच लेने को हूँ आतुर
बाहों में तुम को प्रिये
अब तुम कहो
'मैं भी प्रिये'
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सूर्य नित आता है
नई आशाओं का संचार लेकर
साँझ ढलती है दिवस भर
विरह का उपहार देकर
राह में तेरी खड़ी हूँ
आस का दीपक लिए
अब तुम कहो
'मैं भी प्रिये'
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मैं कहूँ मुझको तनिक
विश्वास न अगले जनम पर
मांगती हूँ साथ तेरा
तुझसे मैं अभी इस प्रहर
बिन अग्नि,कुमकुम के तेरे संग
फेरे मैंने ले लिए
अब तुम कहो
'मैंने भी प्रिये'