तुम्हे निहारे हुए बहुत दिन बीत गए
मन को मारे हुए बहुत दिन बीत गए
मेरे प्रियतम तुम आओ तो
फिर से मैं सिंगार करूं
ज़ुल्फ़ सँवारे हुए बहुत दिन बीत गए
अंक मे अपने भर लो मुझको
इतना तो उपकार करो
बांह पसारे हुए बहुत दिन बीत गए
तुम संग वो खुशियाँ लौटेंगी
सुख कल वो पल आएंगे
जिन्हे गुज़ारे हुए बहुत दिन बीत गए
basss yu.n hi kabhi jab khud se kuchh kahne ki hulas uthati hai mann me, baat kagaz pe bikhar jaati hai....
Friday, August 31, 2007
Tuesday, August 14, 2007
देखिए ....
देखिए क्या था, क्या होता जा रहा है आदमी
इंसानियत का अर्थ खोता जा रहा है आदमी
शब् गुलामी की ढले गुज़रे हैं कितने ही दशक
बेडियाँ फिर भी तो ढोता जा रहा है आदमी
सांस भी ना ले सकेंगी आने वाली पीढियां
विष हवाओं में पिरोता जा रहा है आदमी
कॉम ओ मज़हब की खातिर माँ के भी टुकड़े किये
शूल इस धरती पे बोता जा रहा है आदमी
आज़ाद हैं ग़र आज हम कोई बताये 'अर्चना'
ख़ून के आंसू क्यों रोता जा रहा है आदमी
इंसानियत का अर्थ खोता जा रहा है आदमी
शब् गुलामी की ढले गुज़रे हैं कितने ही दशक
बेडियाँ फिर भी तो ढोता जा रहा है आदमी
सांस भी ना ले सकेंगी आने वाली पीढियां
विष हवाओं में पिरोता जा रहा है आदमी
कॉम ओ मज़हब की खातिर माँ के भी टुकड़े किये
शूल इस धरती पे बोता जा रहा है आदमी
आज़ाद हैं ग़र आज हम कोई बताये 'अर्चना'
ख़ून के आंसू क्यों रोता जा रहा है आदमी
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