Wednesday, February 24, 2010

बोलो क्यों खामोश हो गए???

पापा नहीं रहे. बीती 28 जनवरी हमारे लिए मनहूस दिन साबित हुई. यकीन नहीं होता. जैसे कोई बहुत बुरा सपना देखा हो. ऐसा सपना जो टूटता ही नहीं।
पापा बीते तीन साल से अल्जाइमर्स से पीड़ित थे. एक असाध्य रोग. शुरू-शुरू में वो बात करते-करते अटक जाते थे. धीरे-धीरे बातों का संदर्भ भूलने लगे. उन्हें अपनी बात कहने के लिए सही शब्द नहीं मिलते. अभिव्यक्ति की असमर्थता उन्हें बुरी तरह झुंझला देती. बाद में उनकी बातें वाक्यों में नहीं, बल्कि चंद शब्दों में ही सीमित होकर रह गईं।
बहुत तकलीफदेह था उन्हें इस हालत में देखना. वो खुद में खोये रहते, किसी चीज में, किसी व्यक्ति में कोई रुचि नहीं. आखिरी बार बीते साल नवंबर में उन्हें मिली तो काफी देर तक देखते रहने के बाद बोले, ‘चेहरा देखा है.... नाम भूल जाता हूं’. जैसे किसी ने पहाड़ से नीचे फेंक दिया हो मुझे. पापा मेरा नाम भूल गए??? कैसे? क्यों??
अभी इस झटके से उबरी भी नहीं थी कि पता चला उन्हें कैंसर है.... पेट में. बहुत देर हो चुकी थी. डॉक्टर ने गिनती के दिन दिए उन्हें. कोई कुछ नहीं कर सकता था.... सिवाय इंतजार के. पापा को इतना निरीह कभी नहीं देखा था. पर हम सब भी तो वैसे ही थे.... लाचार, बेबस. ईश्वर से प्रार्थना के अलावा करते भी क्या. उनके आखिरी समय में उनके पास न होने का दर्द मेरे साथ हमेशा रहेगा.... उनकी यादों की तरह.


बोलो क्यों खामोश हो गए???

याद हैं बचपन के वो दिन प्यारे
खेल-खिलौने, चंदा-तारे
सुनीं थीं तुमसे कथा कहानी
ओरी बिल्ली, राजा रानी
सीखी तुमसे ‘अं’ की बिंदी
गुणा भाग, अंग्रेजी हिंदी
तुमने बतलाया था इक बार
संस्कृति और धर्म का सार
शब्द तुम्हारे कहां खो गए
बोलो.... क्यों खामोश हो गए?

कंठस्थ तुम्हें थे श्लोक हजार
विशुद्ध ज्ञान के थे भंडार
समय ने कैसी करी ठिठोली
न जाने क्यों छीन ली बोली
किसकी नजर लगी हे राम
भूल गए अपनों के नाम
जनक ही सीता को न चीन्हे
ऐसा कभी सुना किसी ने
इतने क्यों निर्मोह हो गए
बोलो..... क्यों खामोश हो गए?

थी कितनी तुमको पीड़ा हाय
मूढ़ मगज हम समझ न पाए
घाव तुम्हारे सब भर जाते
ऐसा मरहम कहां से लाते
सुन पाने को तुम्हरी बानी
करी तपस्या, मन्नत मानी
व्यर्थ हो गए सभी प्रयास
दिखती कोई नहीं थी आस
क्या थे तुम और क्या हो गए
बोलो..... क्यों खामोश हो गए?

उस पर और कुठाराघात
छोड़ गए हम सबका साथ
तुमने काट लिए सब मोह
हमसे सहा न जाए विछोह
आंखें झर-झर बहती जाएं
तुमसा धीरज कहां से लाएं
मां का सूना-सूना माथा
लाल रंग से टूटा नाता
क्यों ऐसी गहरी नींद सो गए
बोलो ..... क्यों खामोश हो गए?

9 comments:

Mithilesh dubey said...

बहुत ही बेहतरीन , दिल को छू गयी आपकी रचना , बधाई ।

Udan Tashtari said...

भावुक रचना...

ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे, श्रृद्धांजलि!!

Manish Tripathi said...

क्या कहूं ....

Unknown said...

tumhari takleef ka andaaza lagana mushqil hai.lekin tumhare shabd kaleeja cheerne ke liye kafi hai.
nidhi singh

Unknown said...

no words to say anything.

Amit Harsh said...

आप ने मेरी कहानी आपने अल्फाजों में बयाँ कर दी ..... मेरे पिता भी Alzheimer से पीड़ित है मै उनका दर्द महसूस करता हूँ हर रोज और कुछ कर नहीं पाता .. न जाने क्यों मुझे लगता था यह सिर्फ मेरे घर की कहानी है ..... जिस तरह आपने बचपन का वर्णन किया है मै सोच रहा हूँ कि इतनी समानता कैसे हो सकती है शब्द दर शब्द मेरे है बस कलम आपकी है ... यही एक साहित्यकार की कामयाबी है... बहुत खूब .... कि अब मै क्या कहू

बात भी आपके आगे न जुबां से निकली
लीजिये हम आये थे क्या क्या सोच कर दिल में

इससे कह दो कि चुप रहे
यह खामोशी बहुत बोलती है

उन्मुक्त said...

ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे।

Kazmi said...

Bahut hi khubsurat....

Ehsaas mere Kalam tumhari
Milti julti si rahi kahan hamari

abha dwivedi said...

di .....kuch nahi hai kahne ko, aapne to bahut rula diya ......ek ek shabd ko ham mehsoos kar paa rahe hain. aapki taklif....aapke shabdo ki peeda, wo dard jo aapne uncle ke liye feel kiya ....aaj papa - mamma ki bahut yaad aayi. Di ham jis baat ko soch ke bhi sihar uthte hain, aapko wo sab sahna pada, sath me maa ka dard bhi , jo aapne antim ki panktiyoon me vayakat kiya ....aaj mere ye aaseem bahte hue aansoo hi shraddanjali hain uncle ke liye aur aapki dard se bhari lekhni ke liye ...........aapko pta hai di, aapki wall wali post ..hamne apne bete ko padh ke sunai,actually ham bht roye , wo hame dekh ke pareshan ho gaya.....tb hamne kaha ki ye tumhari mausi ne likha hai, wo shsyad kuch nhi samjh paya [ 6yrs old] aur chupchap room se chala gaya .....