ऐसा नहीं के जिन्दगी में कुछ कमी थी
फिर भी इन आंखों में हलकी सी नमी थी
आपकी आहट से मुस्काई हैं कलियाँ
कल तलक तो इस चमन में भी गमी थी
बह चली है ज़िन्दगी बेकल नदी सी
झील के मानिंद जो अब तक थमी थी
लेने लगे अंगड़ाई देखो ख़्वाब फिर से
बरसों बरस से बर्फ सी जिन पर जमी थी
यूं तो थे जीने के सामां सारे 'अर्चन'
दिल में धड़कनों की, थोड़ी सी कमी थी.
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