Monday, July 25, 2011

तय कर लिया है..


तय कर लिया है..
मैंने,
अब कभी
तुम्हें याद नहीं करूंगी....
मैं तुम्हें
याद करना ही न चाहती....
बंद रखूंगी
मन के किवाड़
चाहे कुछ भी हो..
नहीं खोलूंगी सांकल...
मैं, थक चुकी हूं...
तुम्हारी यादों को
खुद से दूर करते...
फिर भी,
इस बार
इरादा पक्का है...
इसी जद्दोजहद में
आंख लग जाती है...
न जाने कब...
पर..
पहले ही स्वप्न में,
तुम सामने आ खड़े होते हो....
अचकचा जाती हूं मैं...
खुद को रोक नहीं पाती
और हमेशा की तरह
दौड़ कर...
छिपा लेती हूं
खुद को
तुम्हारे सीने में...
और तुम...
सिसकियों से कांपते मेरे बदन को
हौले से थपकाते हो...
मेरे आंसू थमते ही नहीं..
जाने क्यों,
बढ़ती ही जाती है
बेचैनी...
तभी...
आंख खुल जाती है..
और मैं खुद को
अपराधी महसूस करने लगती हूं
हमेशा की तरह...
सोचती हूं...
मुझे अब तुम्हें
याद नहीं करना चाहिए...
किसी भी हालत में
नहीं....
और ... इस बार...
इरादा पक्का है मेरा.....??

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