वक्त के साथ रंग बदलती मोहब्बत देखी
हम तो दीवाने हुए, उसने सहूलियत देखी
हमने कसमों को निभाने में कसर ना रखी
उसने इक वादा भी करने में मुसीबत देखी
वो तो मसरूफ रहा महफिलों में गैरों की
मैं कोई नाम भी लूं, माथे पे सलवट देखी
कहीं न चैन मिला, न सुकून पलभर का
दिल के बीमारों की, अक्सर यही हालत देखी
ये हुआ क्या कि संगदिल पे यकीं कर बैठे
नूर चेहरे का नज़र आया, न नीयत देखी
हमने पत्थर में बसे इश्क की धड़कन सुन ली
उसने तो ‘ताज’ में भी कब्र-ए-मोहब्बत देखी
गोया हम दिल को बहलाने की तो चीज़ न थे
के याद आएं तभी जब कभी फुर्सत देखी
किसी से हाथ छुड़ाया, कहीं पकड़ा दामन
इश्क के नाम पे दुनिया में सियासत देखी
कुछ सुकूं पाने को खोली थी जुबां ‘अर्चन’ ने
उसके हर लफ्ज़ में दुनिया ने बगावत देखी