शुतुरमुर्ग को देखा है कभी
विपदा पड़ने पर
कैसे अपनी गर्दन घुसा देता है
रेत में
और महसूस करता है
खुद को सुरक्षित
पूरी तरह.
..क्योंकि तब नजर नहीं आता
उसे कोई भी संकट
अपने आसपास.
'नादान' कहते हैं उसे लोग
आँखे बंद कर लेने से
भला कहीं तकलीफें कम होती हैं?
पर यकीनन
कुछ राहत तो मिलती ही होगी
...डर से, आशंकाओं से, चिंताओं से.
सच कहूँ
कभी कभी बहुत मन करता है
बंद कर लूं आँखें..
समेट लूं खुद को..
छुपा लूं अपना चेहरा
मैं भी..
जगह दोगे... अपने सीने में??