Friday, April 25, 2014

ताकि.. मिले कुछ राहत



शुतुरमुर्ग को देखा है कभी

विपदा पड़ने पर 

कैसे अपनी गर्दन घुसा देता है

रेत में

और महसूस करता है 

खुद को सुरक्षित 

पूरी तरह.

..क्योंकि तब नजर नहीं आता

उसे कोई भी संकट 

अपने आसपास. 


'नादान' कहते हैं उसे लोग

आँखे बंद कर लेने से 

भला कहीं तकलीफें कम होती हैं? 


पर यकीनन 

कुछ राहत तो मिलती ही होगी 

...डर से, आशंकाओं से, चिंताओं से.


सच कहूँ 

कभी कभी बहुत मन करता है

बंद कर लूं आँखें.. 

समेट लूं खुद को.. 

छुपा लूं अपना चेहरा 

मैं भी..

जगह दोगे... अपने सीने में??

1 comment:

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

वाह... उम्दा भावपूर्ण प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
नयी पोस्ट@मतदान कीजिए
नयी पोस्ट@सुनो न संगेमरमर