Tuesday, January 20, 2009

काश तुम यह जान पाते

काश तुम यह जान पाते

किस तरह मैं जी रही हूँ
कौन सा विष पी रही हूँ
किस तरह कटती हैं रातें
किस कदर चुभती हैं बातें
बोझ सीने पर मेरे है
वेदना में प्राण पाते
काश तुम यह जान पाते


जब भी मिली तुमसे, मिली मैं
ह्रदय में यह आस लेकर
मोड़ दोगे भाग्य रेखा
हाथ में यह हाथ लेकर
देखते आंखों में मेरी
टुकड़े हुआ अरमान पाते
काश तुम यह जान पाते


जब भी सुना था गीत मेरा
ह्रदय का संगीत मेरा
पूछा के किसकी प्रेरणा से
कौन मन का मीत मेरा
झांकते आँखों में मेरी
ख़ुद की ही तस्वीर पाते
काश तुम यह जान पाते

कितना ही लिखा मैंने
कागज़ भी किए काले
तुम समझे न व्यथा मेरी
हांथों में पड़े छाले
और करूँ जतन कितने
कम से कम इतना बताते
काश तुम यह जान पाते

आस भी रोने लगी है
साँस भी खोने लगी है
करती रही इंतजार तेरा
ज़िन्दगी सोने लगी है
किरण बनकर सूर्य की तुम
काश तुम मुझको जगाते
काश तुम यह जान पाते



4 comments:

Prabhakar Pandey said...

जब भी सुना था गीत मेरा
ह्रदय का संगीत मेरा
पूछा के किसकी प्रेरणा से
कौन मन का मीत मेरा
झांकते आँखों में मेरी
ख़ुद की ही तस्वीर पाते
काश तुम यह जान पाते।

यथार्थ एवं सुंदर प्रस्तुति। धन्यवाद।

शोभा said...

किस तरह मैं जी रही हूँ
कौन सा विष पी रही हूँ
किस तरह कटती हैं रातें
किस कदर चुभती हैं बातें
बोझ सीने पर मेरे है
वेदना में प्राण पाते
सुन्दर अभिव्यक्ति।

Vinay said...

बहुत ही सुन्दर मनोभावन छिपी है

---आपका हार्दिक स्वागत है
चाँद, बादल और शाम

संगीता पुरी said...

वाह !!! बहुत संदर।