Thursday, February 12, 2009

प्रेम दिवस पर.....



इन्द्रधनुष नहीं मेरा प्यार
जो सिर्फ़ बारिश में खिले

मोती भी नहीं मोहब्बत मेरी
जो मिले गहरे पानी तले

चाँद भी नहीं प्यार मेरा
नज़र आए बस्स साँझ ढले

मेरा प्यार तो है हवा सरीखा
हर पल तुम्हें स्पर्श करे.....
और...... तुम्हें पता भी न चले.



4 comments:

शोभा said...

मेरा प्यार तो है हवा सरीखा
हर पल तुम्हें स्पर्श करे.....
और...... तुम्हें पता भी न चले.
वाह क्या बात कही है। बहुत खूब।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

सात रंग में, रूप तुम्हारा,
छिपा हुआ है नया-नया।
सावन-भादों मे दिखलाता,
रूप अनोखा नया-नया।।

सीपों के मोती में पाया,
रूप तुम्हारा नया-नया।
सागर के तल में है छाया,
रूप तुम्हारा नया-नया।।

बसा हुआ चन्दा-मामा में,
रूप तुम्हारा नया-नया।
राज चाँदनी में ही पाया,
रूप तुम्हारा नया-नया।।

मलयानिल के झोंको में है,
रूप तुम्हारा नया-नया।
प्रेम-दिवस पर मैं चाहूँगा,
रूप तुम्हारा नया-नया।

Dr. Santosh Manav said...

nice poetry.

Amit Harsh said...

.... आज शब्द नहीं है मेरे पास इतने सुंदर Metaphors, Simlis, personification, अलंकार का अदभुत संगम कम देखने को मिलता है ....

रंग में डूबी वो फिज़ा हो गयी
चंद बाते जो हमारे दरमियाँ हो गयी
जिनकी सरगोशियों में एक संगीत था
वो हवाए भी हवा हो गयी