Thursday, January 27, 2011

पापा......



4/7/1941-------28/01/10


संघर्ष तुम्हारा ख़त्म हो चुका ,
अब नहीं बहते आँखों से आंसू,
सुनाई नहीं देतीं चीखें तुम्हारी,
ना नजर आता है कहीं पीड़ा से तुम्हारा वो
हाथ-पाँव पटकना...
शांत हो चुका है सबकुछ
तुम्हारे शांत होते ही ....

अब मजबूरी नहीं हमारी,
तुम्हे तिल-तिलकर ख़त्म होते देखना
तुम्हारी कमजोरी, तुम्हारी वेदना के साथ बढती
हमारी लाचारी.... भी अब ख़त्म
हो चुकी है...
पर सवाल अब भी उठता है मन में
तुम्हारे साथ ही ऐसा क्यों???

गर्व है हमें तुम पर आज भी
बेशक, नहीं हो तुम साथ हमारे
पर, महसूस होते हो अक्सर आस-पास,
देखते रहते हो हमें
दूर आसमान में बैठकर,
आज भी देखो, वो वहां.... मुस्कुरा रहे हो,

जब तक साथ रहे, तुमने
भीगने ना दिन कभी पलकें हमारी,
अब तुम्हे याद करके भर आती हैं
आँखें अक्सर
जानते हैं..
तुम्हें होती होगी पीड़ा
हमारे रोने से.
फिर भी......

कैसा संयोग है ये कि तुमने देखा था
हमें इस दुनिया में आँखें खोलते
और हमने देखा...
तुम्हें आँखें मूंदते...
सदा के लिए.

2 comments:

Unknown said...

bahut acchi dil ko chune wali

Unknown said...

Dil Ko chhu gayi .mere dady 11.3.17 Ko chale Gaye