आहें बेअसर सारी........ वो रत्ती भर नहीं पिघला
बहुत पिघली मेरी आँखें, मगर पत्थर नहीं पिघला
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खुदा का वास्ता देकर, मनाने की कवायद की
पिघलने को पिघल जाते हैं सूरज, चाँद, तारे भी
आसमां होता, तो पिघलता, था समंदर नहीं पिघला
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मेरी ख्वाहिशों की आंच, जलाती रही मुझको
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सवालों और ख्यालों में उलझ कर रह गयीं साँसें
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मोहब्बत यूं तो की उसने ज़माने की हर इक शै से
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