इस भरोसे के साथ कि
थामे रखोगे तुम मुझे हर घड़ी /हर पल
फिर ना जाने कब
मैंने पाया खुद को
मैंने पाया खुद को
बहते नहीं.... डूबते हुए
अकेली.
समंदर की
अनगिनत तहों के नीचे
समंदर की
अनगिनत तहों के नीचे
.... हाथ खाली थे मेरे
तुम नहीं थे आस पास
कहीं भी…
तुम..... तुम तो दूर कहीं किनारे खड़े
मुस्कुरा रहे थे
मुझे डूबती देख
वाकई
बहुत फर्क है मुझमें और तुममें
-------------------------------
No comments:
Post a Comment