वो अक्सर उकता जाते हैं
जब पाते हैं
खुद को
साइन/ कॉस थीटा
साइन/ कॉस थीटा
की ज़ंजीरों में
जकड़ा हुआ
सिर पर झूलती है
पायथागोरस की थ्योरम
हर घड़ी /
और हर सांस के साथ
फेफड़ों में भर लेते हैं
लीनियर इक्वेशंस
वो बड़बड़ाते हैं नींद में
पिरियॉडिक टेबल/
और हर निवाले के साथ
गटकते हैं
केमिकल रिएक्शन्स
इलेक्ट्रिक करेंट दौड़ता रहता है
सोते-जागते
जेहन में/
सपनों में चढ़ते हैं वो
हर रात
परसेंटेज का पहाड़
खुद का आज
मशीन बना लेते हैं
सफल जीवन जीने की आस में
… बेचारे ये बच्चे!!!
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