Monday, August 31, 2015

बेचारे ये बच्चे!!!

 
वो अक्सर उकता जाते हैं 
जब पाते हैं
खुद को 
साइन/ कॉस थीटा 
की ज़ंजीरों में 
जकड़ा हुआ 

सिर पर झूलती है 
पायथागोरस की थ्योरम 
हर  घड़ी /
और हर सांस के साथ 
फेफड़ों में भर लेते हैं 
लीनियर इक्वेशंस 

वो बड़बड़ाते हैं नींद में 
पिरियॉडिक टेबल/
और हर निवाले के साथ
गटकते हैं 
केमिकल रिएक्शन्स 

इलेक्ट्रिक करेंट दौड़ता रहता है 
सोते-जागते 
जेहन में/
सपनों में चढ़ते हैं वो 
हर रात 
परसेंटेज का पहाड़ 

खुद का आज
मशीन बना लेते हैं 
सफल जीवन जीने की आस में 
… बेचारे ये बच्चे!!! 

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