Monday, April 30, 2007

यही है जिन्दगी

ज़िन्दगी शायद इसी को कहते हैं.....


कुछ बेबसी, कुछ लाचारी
कुछ ख्वाहिशें, किस्मत की मारी
कुछ मंजिलें, कुछ रास्ते
कुछ प्यार सबके वास्ते
चीथड़े होती सौगात जिसे
हर वक़्त सीते रहते हैं

जिन्दगी शायद इसी को कहते हैं


कभी धूप, कभी छाया
कहीँ फाका, कहीँ माया
कुछ भूख भी, कुछ प्यास भी
एक दिन बदलेगी ये आस भी
मिल जायेगी किसी दिन
इस पर ही जीते रहते हैं

जिन्दगी शायद इसी को कहते हैं

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