Friday, May 11, 2007

सीने में......

सीने में ग़र हमारे ये दिल नहीं होता
उनको भुलाना इस कदर मुश्किल नहीं होता

नफरत मिटा नहीं सके तो डूब जाओगे
इस आग के दरिया का साहिल नही होता

शिकवे गिले भुला कर आओ गले मिलें
इन रंजिशों से कुछ भी हासिल नही होता

ग़र माफ़ ना कि होती उसने मेरी खता
वो मेरे जनाजे मे शामिल नही होता

सिर को झुकैयेगा , ज़रा सोच समझ कर
हर शख्स इबादत के काबिल नही होता

कोई रंज नही था हमे मरने का 'अर्चना'
ए दोस्त अगर तू मेरा कातिल नही होता

4 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

अर्चना जी, आप की रचना पढ्कर मै सोच मे पड़ गया कि किस शेर की तारीफ करूँ सब से पहले। क्यूँकि हरेक शेर काबिले तारीफ है। बहुत सुन्दर रचना है।एक बार फिर बधाई।

महावीर said...

सुंदर रचना है। जज़्बातों को खूबसूरत अल्फ़ाज़ों में सजाया है।
कुछ ऐसे ब्लॉग हैं जहां सिर्फ़ metered ghazal लिखी जाती हैं, वहां भी अपनी क़लम का इस्तेमाल करें तो आपको बहुत कुछ नई नई बहरें और अरकान मिलेंगीं। दीगर जानेमाने शायरों से भी आपको सलाह का मौक़ा मिलेगा। हमारे जैसे लोगों की 'वाह-वाही' से निकल कर आपको अभी बहुत आगे जाना है। You have great potential in this field.
महावीर शर्मा

Udan Tashtari said...

बहुत खूब लिखा है. दाद कबूलें. यह शेर तो खास पसंद आया:

ग़र माफ़ ना कि होती उसने मेरी खता
वो मेरे जनाजे मे शामिल नही होता


-बहुत बधाई देता हूँ. आगे भी आपकी रचनाओं का इंतजार रहेगा.

Priya Sudrania said...

अर्चना जी,
बहुत खूब......
यूँ तो सारे शेर खुबसुरत हैं पर इसकी तो बात ही निराली हैं।
कोई रंज नही था हमे मरने का 'अर्चना'
ए दोस्त अगर तू मेरा कातिल नही होता
वाह वाह!!!!