Thursday, September 13, 2007

अब रहा नहीं जाता

तुम बिन अब रहा नहीं जाता


ज्वाल बन चुकी जो कल तक
मात्र शिखा थी प्रेमदीप की
तिल-तिल मैं जल रही निरंतर
आस लिए तेरे सामीप्य की
और नही, बस और नही
मुझसे अब दहा नही जाता

तुम बिन अब रहा नहीं जाता ....


दिन गिन-गिन कई बरस गुज़ारे
और कहाँ तक करूं प्रतीक्षा
ना जाने कब अंत हो इसका
बड़ी जटिल यह प्रेम परीक्षा
बहुत सह चुकी मैं अब तक
बिरहा अब सहा नहीं जाता

तुम बिन अब रहा नही जाता .......

1 comment:

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत भावपूर्ण रचना है।

दिन गिन-गिन कई बरस गुज़ारे
और कहाँ तक करूं प्रतीक्षा
ना जाने कब अंत हो इसका
बड़ी जटिल यह प्रेम परीक्षा
बहुत सह चुकी मैं अब तक
बिरहा अब सहा नहीं जाता