तुम बिन अब रहा नहीं जाता
ज्वाल बन चुकी जो कल तक
मात्र शिखा थी प्रेमदीप की
तिल-तिल मैं जल रही निरंतर
आस लिए तेरे सामीप्य की
और नही, बस और नही
मुझसे अब दहा नही जाता
तुम बिन अब रहा नहीं जाता ....
दिन गिन-गिन कई बरस गुज़ारे
और कहाँ तक करूं प्रतीक्षा
ना जाने कब अंत हो इसका
बड़ी जटिल यह प्रेम परीक्षा
बहुत सह चुकी मैं अब तक
बिरहा अब सहा नहीं जाता
तुम बिन अब रहा नही जाता .......
1 comment:
बहुत भावपूर्ण रचना है।
दिन गिन-गिन कई बरस गुज़ारे
और कहाँ तक करूं प्रतीक्षा
ना जाने कब अंत हो इसका
बड़ी जटिल यह प्रेम परीक्षा
बहुत सह चुकी मैं अब तक
बिरहा अब सहा नहीं जाता
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