कभी यूं ही रूठ कर तेरा मुंह फेर लेना
क्या बताऊँ कैसा लगता है
दिल चाक-चाक हो उठता है....
और बेबस से हम
अपने सपनो का लहू टपकता हुआ देखतें हैं
तुम्हारे लिए एक अदा है महज़
वह तुम्हारा रूठना...
पर टुकड़े-टुकड़े होता मेरा अस्तित्व
बिखर-बिखर जाने को होता है
जी चाहता है....
बाँध लूँ तुम्हे अपनी बांहों मे....
छिपा लूँ अपनी सीने में....
पर पास होती हैं...
महज़...
तन्हाई....
अश्क....
और आहें...
4 comments:
बहुत सुंदर भाव..
बढ़िया. लिखते रहिये.
कभी यूं ही रूठ कर तेरा मुंह फेर लेना
क्या बताऊँ कैसा लगता है
दिल चाक-चाक हो उठता है....
और बेबस से हम
अपने सपनो का लहू टपकता हुआ देखतें हैं
bahut sunder shabdon mein baandha hai bhaavon ko.badhaee
कोमल भावों को सुन्दर शब्द दिये हैं आपनें..
***राजीव रंजन प्रसाद
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