देखो....फिर से सज गईं कंदीलें/जुगनू से बिखर गए दूर तलक/
हवाओं की ठंडी महक फिर भर गई है सांसों में/
हौले से दस्तक हुई है...जेहन में/ वो कच्ची-पक्की यादें...
शायद फिर लौट आई हैं/
दबा के रखा था/ बड़े जतन से जिन्हें/अपनी मजबूरियों के तले/
वो ख्वाहिशें... वो उम्मीदें...मुझसे फिर सवाल करती हैं/
कहां है वो...कहां है जिसे शिद्दत से याद करती है..................
2 comments:
बढिया रचना।
... यकीनन बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति है... अब मै सोच रहा हूँ की मैंने क्यों आपको अपनी Wall पढने को कहा ....
एक जुगनू भी रोशन था चिरागों के बीच
जब अँधेरा हुआ तब लोग पहचाने उसे
...
हवा तेज़ है गम मत करना
चिरागों की तादाद कम मत करना
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