कभी सुबह कभी ढलती हुई सी शाम जिन्दगी
हर मोड़ हर कदम पर नाकाम जिन्दगी
हंसती भी है हमपे, बहाती है अश्क भी
हालत पे अपनी खुद ही हैरान जिन्दगी
महफ़िल सजी हुई है एक पल के वास्ते
अगले ही पल है कितनी वीरान जिन्दगी
साजिश-ए-तकदीर थी, बरबाद कर गयी
होती है बेवजह ही बदनाम जिन्दगी
शामिल है नाम उनमे हमारा भी 'अर्चना'
जीते रहे जो अब तक गुमनाम जिन्दगी
3 comments:
अर्चना जी,आप बहुत अच्छी गजल लिखती हैं।एक दिन जरूर नाम कमाएंगी।हमारी शुभकामनाएं स्वीकार करें अब आप गुमनाम नही रहेगी ।सच कहा है आप ने-
शामिल है नाम उनमे हमारा भी 'अर्चना'
जीते रहे जो अब तक गुमनाम जिन्दगी
बढ़िया लिखा है आपने, शुभकामनाओं के साथ स्वागत है आपका।
वक्त के साए में गुजरती ज़िंदगी,
हर लम्हा एक नया चेहरा है ज़िंदगी।
रिश्तों के ताने-बाने में उलझती ज़िंदगी,
अपनों में अपनापन ढूंढती ज़िंदगी।
परशानियों और उत्साह का पर्याय है ज़िंदगी,
खुशनुमा सुबह का इंतजार करती ज़िंदगी॥
बढ़िया लिखा है आपने, शुभकामनाओं के साथ स्वागत है आपका।
वक्त के साए में गुजरती ज़िंदगी,
हर लम्हा एक नया चेहरा है ज़िंदगी।
रिश्तों के ताने-बाने में उलझती ज़िंदगी,
अपनों में अपनापन ढूंढती ज़िंदगी।
परशानियों और उत्साह का पर्याय है ज़िंदगी,
खुशनुमा सुबह का इंतजार करती ज़िंदगी॥
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