Friday, August 31, 2007

बहुत दिन बीत गए

तुम्हे निहारे हुए बहुत दिन बीत गए
मन को मारे हुए बहुत दिन बीत गए


मेरे प्रियतम तुम आओ तो
फिर से मैं सिंगार करूं
ज़ुल्फ़ सँवारे हुए बहुत दिन बीत गए


अंक मे अपने भर लो मुझको
इतना तो उपकार करो
बांह पसारे हुए बहुत दिन बीत गए

तुम संग वो खुशियाँ लौटेंगी
सुख कल वो पल आएंगे
जिन्हे गुज़ारे हुए बहुत दिन बीत गए

3 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना है।

अनूप भार्गव said...

अच्छी लगीं ये पंक्तियाँ :

अंक मे अपने भर लो मुझको इतना तो उपकार करो
बांह पसारे हुए बहुत दिन बीत गए

Reetesh Gupta said...

अच्छा लगा पढ़कर ...बधाई