एक नाम....
एक आवाज़....
एक अक्स....
जिन्दगी मानो ठहर गई थी
किसी मोड़ पर
हर एक पल को बस्स
वहीँ थाम लेने की जिद थी
हर सांस को वहीँ रोक लेने का जुनून
हवाएं महकने लगी थीं
भीनी-भीनी
फूल खिलने लगे थे हर सू
ख्वाहिशों को लगे पंख
खुशियों ने ऊंची.....ख़ूब ऊंची परवाज़ ली
आंख झपकी भी ना थी
हाँथों से फिसल गयी
मानो एक पूरी सदी
जिन्दगी अब भी ठहरी हुई है
उसी मोड़ पर
सब वैसा ही है
जैसा तब था
एक नाम....(अनजाना सा)
एक आवाज़ (अनचीन्ही सी )
एक अक्स....(धुन्धलाया सा)
2 comments:
बहुत बढ़िया-गहरी रचना.
क्या बात है आज ब्लाग पर काफी खूबसूरत कविताएँ पढ़ने को मिल रही है वह भी कई सबाल करता हुआ…।
बेहतरीन से ज्यादा क्या कह सकता हूँ।
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