Thursday, February 13, 2014

सांस चलने तक

कश्मकश सारी की सारी .. सांस चलने तक 
हर घड़ी इक बेकरारी ..... सांस चलने तक 

हाथ खाली लेके आए... जाना भी है वैसे ही 
ये हमारी..वो तुम्हारी ....... सांस चलने तक 

ना सुनी दिल की कभी ..... खौफ 'लोगों' का रहा
उफ्फ़! ये ‘फ़िक्र-ए-दुनियादारी’ .. सांस चलने तक

मौत को ना मात...  दे पाएगा कोई पैंतरा
बेवजह की होशियारी..... सांस चलने तक 

नसीहतें... हिदायतें.. तल्कीन.. कुछ फरमाइशें
ये रवायतें औ’ रियाकारी.... सांस चलने तक 

‘आज’ की जद्द-ओ-जहद....‘कल’ के इंतजाम में
है मुसलसल जंग जारी ..... सांस चलने तक

‘अहसान’ सी जिंदगी....‘अर्चन’ उतरती भी नहीं
धड़कनों पर बोझ भारी...... सांस चलने तक 

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तल्कीन      =  उपदेश
रवायतें       =  परंपराएं
रियाकारी     =   आडंबर
मुसलसल     =  लगातार

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