ओढ़ लिया है
अपनी ज़िम्मेदारियों/ मजबूरियों
का लिहाफ
चारों ओर से
कसकर
दबा भी लेती हूँ
… कहीं कोई झिर्री नहीं
सोना चाहती हूँ
पूरे सुकून के साथ
पर नींद नहीं आती
ज़रा करवट लेते ही
न जाने कैसे
छूट जाती है पकड़
ढीली पड़ जाती हैं
मेरी सारी कोशिशें
और मेरे लिहाफ में
घुस आती है
सुइयों जैसी चुभने वाली
सर्द हवा
.… तुम्हारी यादों की तरह.
अपनी ज़िम्मेदारियों/ मजबूरियों
का लिहाफ
चारों ओर से
कसकर
दबा भी लेती हूँ
… कहीं कोई झिर्री नहीं
सोना चाहती हूँ
पूरे सुकून के साथ
पर नींद नहीं आती
ज़रा करवट लेते ही
न जाने कैसे
छूट जाती है पकड़
ढीली पड़ जाती हैं
मेरी सारी कोशिशें
और मेरे लिहाफ में
घुस आती है
सुइयों जैसी चुभने वाली
सर्द हवा
.… तुम्हारी यादों की तरह.
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