Thursday, February 20, 2014

पतझड़



रश्क होता है इन पीले पत्तों को देखकर

नाता टूटा टहनी से 

फिर भी मुस्कुरा रहे हैं
कभी उड़ते इधर-उधर 

कभी गोल-गोल मंडरा रहे हैं
अब हवाओं से नया रिश्ता निभा रहे हैं

..

रश्क होता है इन पीले पत्तों को देखकर  

कितना आसान है ना... 

बिछड़ों को भूल जाना
न कोई टीस 

न गुज़रे हसीन वक्त पर आंसू बहाना
जीने का सलीका... 

ये बेजान समझा रहे है..
अब बदले मौसम से रिश्ता निभा रहे हैं
..

रश्क होता है इन पीले पत्तों को देखकर

काश, भूल जाने का हुनर ये 

हमको भी आ जाता

ना होतीं शिकायतें  

ना कहीं कुछ कसमसाता
यहाँ तो सांसें भी 

मजबूरी सी लिए जा रहे हैं
और 'वो' मरते हुए भी 

नया रिश्ता निभा रहे हैं

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