रश्क होता है इन पीले पत्तों को देखकर
नाता टूटा टहनी से
फिर भी मुस्कुरा रहे हैं
कभी उड़ते इधर-उधर
कभी गोल-गोल मंडरा रहे हैं
अब हवाओं से नया रिश्ता निभा रहे हैं
..
रश्क होता है इन पीले पत्तों को देखकर
कितना आसान है ना...
बिछड़ों को भूल जाना
न कोई टीस
न गुज़रे हसीन वक्त पर आंसू बहाना
जीने का सलीका...
ये बेजान समझा रहे है..
अब बदले मौसम से रिश्ता निभा रहे हैं
..
रश्क होता है इन पीले पत्तों को देखकर
काश, भूल जाने का हुनर ये
हमको भी आ जाता
ना होतीं शिकायतें
ना कहीं कुछ कसमसाता
यहाँ तो सांसें भी
मजबूरी सी लिए जा रहे हैं
और 'वो' मरते हुए भी
नया रिश्ता निभा रहे हैं
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