Friday, February 14, 2014

वो जो कॉफ़ी उधार है तुम पर ..

वो जो कॉफ़ी उधार है तुम पर ..

महज़ एक मग नहीं है
भाप उगलता हुआ 
वक़्त है वो
जो संग तुम्हारे बिताना है मुझे 
हौले हौले चुस्कियां लेते हुए 

उस वक़्त को
लंबा.... और भी लंबा खींचना है मुझे 

हंसना मत मुझपर
गर ठंडी हो चुकी उस कॉफ़ी को भी मैं
ठंडा... और भी ठंडा होने दूँ

और फिर पियूँ भी, तो यूँ
मानो अब भी हो बहुत गर्म

बस समझ जाना
अभी और वक़्त बिताना चाहती हूँ
तुम्हारे साथ

वो जो कॉफ़ी उधार है तुम पर...
महज बहाना नहीं है
तुमसे मुलाकात का
एक अहसास है नया
बेहद खुशनुमा सा
उन पलों .. को जी भर के जीना है मुझे

वो जो कॉफी उधार है तुमपे
बस इतना समझ लो.…
चंद साँसें उधार हैं तुमपे...!!!

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