कई बार
समझ नहीं आते
कुछ लफ्जों के अर्थ..
खासतौर पर तब..
जब कहे होते हैं तुमने..
तुम्हारे मुंह से सुना है कई बार
वो सब..
जो सुनना चाहा था मैंने
हमेशा से...
लफ्ज़ वही हैं...
फिर भी
न जाने क्यों
उसमें वो अर्थ नहीं गूंजता
जो समझना चाहती थी मैं
हमेशा से....
सच कहूं....
बहुत सीधे-सपाट लगते हैं
तुम्हारे लफ्ज़ ...
न तो महसूस होती है उनमें
भावनाओं की नरमी..
... न किसी जुड़ाव की गर्माहट
लहजा भी...
कई बार बहुत रूखा सा होता है..
जबकि
कहते हो तुम वही सब
जो सुनना चाहती थी
मैं..
हमेशा से.... !!!!!
समझ नहीं आते
कुछ लफ्जों के अर्थ..
खासतौर पर तब..
जब कहे होते हैं तुमने..
तुम्हारे मुंह से सुना है कई बार
वो सब..
जो सुनना चाहा था मैंने
हमेशा से...
लफ्ज़ वही हैं...
फिर भी
न जाने क्यों
उसमें वो अर्थ नहीं गूंजता
जो समझना चाहती थी मैं
हमेशा से....
सच कहूं....
बहुत सीधे-सपाट लगते हैं
तुम्हारे लफ्ज़ ...
न तो महसूस होती है उनमें
भावनाओं की नरमी..
... न किसी जुड़ाव की गर्माहट
लहजा भी...
कई बार बहुत रूखा सा होता है..
जबकि
कहते हो तुम वही सब
जो सुनना चाहती थी
मैं..
हमेशा से.... !!!!!
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