Tuesday, March 18, 2014

होगा वही ..

होगा वही 
जो तुम चाहोगे
तय कर रखा है तुमने 
सब कुछ 
बहुत पहले से 
ना किसी गुहार का 
असर तुम पर 
ना बंदगी का 

… फिर क्यों करूं 
तुम्हारी इबादत
क्यों फैलाऊं झोली
तुम्हारे सामने
क्यों कहूँ कि
दया बनाये रखना
जबकि
करोगे वही तुम
जो तुमने तय कर रखा है
बहुत पहले ही

… तुम्हारे वजूद पे
कोई संदेह नहीं बेशक
पर तुम
'पिघलते' भी हो कभी,
इस बात पर यकीन
ज़रा भी नहीं

कुछ अच्छा हुआ
तो मान लूं करम है तुम्हारा
बुरा हुआ तो कहूं … यही था किस्मत में
कैसी मनमानी है ये
कि दंड देते हो
बिना किसी अपराध के
और उस पर तर्क ये
कि इससे बुरा भी हो सकता था

मैं करूं मिन्नतें/मन्नतें .…
तुम मौज लो.… लेते रहो
अब नहीं स्वीकार मुझको
क्यों मनाऊं करूं कोई तप
तुम्हें प्रसन्न करने को
क्यों करूं परवाह
तुम्हारी, जब तुम हो
बेअसर
बेफिकर
मेरी पीड़ाओं से

तुम रहो इस दंभ में
कि सब उपकार तुम्हारे हैं
पर बता दूं तुम्हें
नहीं उम्मीद तुमसे अब मुझे
तुम तो बस वो ही करो
जो 'तुमने' तय किया 
हैं 

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