सच सामने हो… तो भी मुकर जाते हैं लोग
क्यों आइना देखकर...... डर जाते हैं लोग
.
जो लथपथ है खूं में.... क्या अपना है कोई
नहीं, तो 'मरने दो' कहकर गुज़र जाते हैं लोग
.
भटकते हैं तलाश में ख़ुशी की ... दर-ब-दर
पर लौटकर फिर अपने ही घर जाते हैं लोग
.
न अपनापन...... न खुशबू रिश्ते-नातों में
भला गाँव से क्या सोचकर शहर जाते हैं लोग
.
हज़ारों-सैकड़ों लाशों को चलते मैंने देखा है
यहाँ जीने की कोशिश में... मर जाते हैं लोग
.
क्यों जीते-जागते बन्दों से नज़रें फेर लेते हैं
झुकाकर सर पत्थर के आगे ठहर जाते हैं लोग
.
किसी के दिल में बसने में 'अर्चन' वक़्त लगता है
मगर नज़रों से चंद लम्हों में उतर जाते हैं लोग
No comments:
Post a Comment