सुनो मलाला
सुनाने हैं तुम्हें
कुछ सच
कड़वे ..... बहुत कड़वे !!
बताना है तुम्हें
कि तुम अकेली नहीं हो..
बहादुर..! जुझारू..!! जांबाज़..!!!
तुम्हारी सरीखी हैं तमाम.
जिधर भी नजर दौड़ाओ..
मिल जायेगी कोई 'मलाला'.
यकीन जानो
तुम्हें ये बताने के पीछे
इरादा
तुम्हें कम आंकने का बिल्कुल नहीं
ना ही
तुम्हारे साहस पर
कोई सवाल ही है.
बेशक!
तुमने तालिबान के खिलाफ
उठाई ऊंची आवाज
दिखाया उसे ठेंगा
पर क्या पता है तुम्हें..
बहुत सारी लड़कियां
जाने कितनी ही स्त्रियां
कमोवेश तुम्हारी तरह ही जूझ रही हैं
हर रोज
अपने जीवन में ...'तालिबान' से!
तुम सुन रही हो ना मलाला?
वो सभी कर रही हैं सामना
अपने आस-पास मौजूद दहशतों का.
हर रोज
उनकी राहों में बिछाई जाती हैं
तमाम बारूदी सुरंगें
हर घड़ी तनी रहती हैं उन पर
नियमों/ प्रतिबंधों/अपेक्षाओं की बंदूकें!
वर्जनाओं से बंधी ये औरतें
जूझ रही हैं तुम्हारी तरह
कट्टरता से
रूढ़ियों से
बजबजाती हुई मानसिकता से
और
जबरन थोपी गई जिम्मेदारियों से भी!
कभी तेजाबी हमला झेलती
तो कभी अजन्मी बेटी के हक के लिये लड़ती
कभी अपने आत्मसम्मान के लिये जूझती
तो कभी
अपनी देह की रक्षा के लिये संघर्ष करती!
ये सब भी
तुम्हारी तरह ही चाह रही हैं
एक बेहतर कल
अपने-अपने दायरों में!
क्या तुम ये जानती हो मलाला?
इनमें से कई
खो बैठती हैं
इस जंग में जिंदगी अपनी
बिल्कुल गुमनाम !
न तो उन्हें तमगा हासिल होता है
न मिलता है कोई सम्मान
पर यकीन मानो
इससे कम नहीं होती सार्थकता उनकी
या
उनके हिस्से की लड़ाई की!
मलाला..
बेशक तुम मिसाल हो जमाने के लिये
पर मशालें और भी हैं
जो जल रही हैं
रौशन करने को ये जहां
यकीनन..
तुम अकेली नहीं हो...!